PVCHR initiative supported by EU

Reducing police torture against Muslim at Grass root level by engaging and strengthening Human Rights institutions in India

Friday, December 27, 2013

23 दिसम्बर को दोपहर के समय मुजफ्फरनगर शाहपुर कैम्प से दंगा पीडिता मैहरुनिसा का मुझे फोन आया, कि हमें कैम्प से जबरजस्ती हटा दिया गया है, हमारे पास रहने का कोई ठिकाना नही है हम कंहा जायें ? खुदा के वास्ते आप हमारी कुछ मदद कीजिये, हमें आपके मदद की जरूरत है | मैहरुनिसा रो रोकर बार-बार मदद की गुहार लगा रही थी वह बार बार कह रही थी की इतनी ठंढ में मैं कंहा जाऊ ? इस समय मैं इसी गावं के गोकुलपुर में एक मकान के बाहर बरामदे में अपने छोटे-छोटे बच्चों और सास के साथ हूँ | मेरे जैसे कई परिवारों को मदद की जरूरत है जिनका कोई ठिकाना नही है | मदरसे वालों ने हमारा टेंट अचानक ही उजाड़ दिया, हम गुहार लगाते रहे उन्होंने हमारी एक नही सुनी | हमने इस घटना की सूचना तुरंत ईमेल और डाक द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री. अखिलेश यादव जी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, और केंद्र सरकार को दिया और उनसे अविलम्ब इन दंगा पीडितो की सहायता के लिए हस्तक्षेप की अपील की |
हमारी चार सदस्यी टीम, जिसमें डा. लेनिन रघुवंशी (निदेशक मानवाधिकार जननिगरानी समिति), मेरठ के सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेजर डा. हिमांशु सिंह, मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहम्मद ताज और मैं श्रुति नागवंशी (संयोजिका वायस ऑफ़ पीपुल, उत्तर प्रदेश) 21 दिसम्बर 2013 को शाहपुर गाँव के इस्लामिया मदरसे के खुले आसमान के नीचे अस्थाई रूप से बनाये गये कैम्प में मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ित परिवारों से मिलने पहुचे | इनमें से कई परिवार कंही जा चुके थे | जो रह गये, वे मुख्यतः दिहाड़ी, मजदूर ईट भट्ठा मजदूर रह गये थे | जिन्हें 23 दिसम्बर को जबरिया उजाड़ दिया गया और कहा गया कि आप अपने घर लौट जायें | सवाल यह है यह मजदूर कंहा जाये जिन गाँवो से इन परिवारों ने भागकर अपनी जान बचायी, वंहा दहशत से वे जाना नही चाहते | वंहा उनके रहने का भी कोई ठिकाना नही रहा, जो कुछ था वह अराजकतत्वो द्वारा छिन्न भिन्न कर दिया गया | लोगों ने बताया कि हमें सरकारी गाड़ी में सर्वे कराने हमारे गाँव ले जाया गया था जब हमने अपने घरों की हालत देखी थी | कुछ के घरों के छत भी उतार लिए गये हैं, उन्होंने कहाकि हमारा घर अब घर नही रहा | हम वंहा जाकर क्या करेंगे, जंहा जान पर बन आयी हो |
 एक पीड़ित ने स्वव्यथा कथा बताते हुए दर्द भरे आवाज में कहाकि, 7 सितम्बर को मन्दौर की उस पंचायत ने हमारी जिन्दगी बदल दी इसके पहले हम अपने गाँव में कई पुश्तों रह रहे थे, हम ठहरे मजदूर हमें जो कोई मजदूरी के लिए बोलता या काम देता हम वही करके अपनी जिन्दगी गुजार रहे थे | लेकिन पंचायत में क्या हुआ ? उसके बाद ही जाटो और मुसलमानों में झगड़ा हो गया, जिसमें दो जाट मारे गये जिनकी लाशें गावं में आने के बाद कोहराम मच गया जाटो का समूह हमें अपने घरों से भगाने पर आमादा हो गये | अगर हम जैसे तैसे भाग कर अपनी जान न बचाते तो मार दिए जाते | वे लोग जो हमारे साथ इतने सालों से प्रेम से रहते आये थे वही हमें जान मारने काट डालने की धमकी दे रहे थे | उनकी आँखों में आग उबल रहा था और हाथों में लाठी डंडे, चापड़ या जो कुछ हथियार या औजार मिला वही लिए थे | हम कुछ समझ ही नही पा रहे थे कि क्या और क्यों हो रहा है | बस हर कोई अपना अपने परिवार की जान किसी तरह बचाने के लिए भाग रहा था | जिसका मुहँ जिस दिशा में उसी तरफ भाग रहा था | हमने कुछ देर और की होती तो हमारी लाशें मिलतीं वंहा | हमें तो हर तरह से दर्द झेलना था हमारे बच्चे हमारे सामने मारे जाते तो भी हम तडपते और हम मारे जाते, तो भी अपनी जान खोने की तडप होती |
शाहपुरा इस्लामिया मदरसे के इस कैम्प में दंगा प्रभावित अलग-अलग गावों सिसोली, हडौली, काकडे, सोरम, गोइला आदि के तीन सौ परिवार रह रहे थे | अब भी वंहा बयालिस परिवार टेंटो में थे जो 23 दिसम्बर को खदेड़ दिए गये | इन परिवारों में पांच गर्भवती महिलाये - अफसाना उम्र 19 W/o वाजिद , 2. परवीन उम्र 30 W/o असलम, 3. शमसीदा उम्र 30 W/o आस मोहम्मद, 4. संजीदा उम्र 26 W/o महबूब, 5. मोमिना उम्र 30 W/o दिलशाद थीं जिन्हें छ: से सात माह का गर्भ था |
काकडे गाँव की शहजाना (उम्र 30 पत्नी कामिल) जो ईट भट्ठा मजदूर है वह जिस दिन गाँव से अपनी और अपने परिवार की जान बचाते हुए भागकर कैम्प में आयी | उसी दिन उसे लडकी पैदा हुई, ऐसे में सास ने ही प्रसव कराया | आठ दिन बाद बच्ची निमोनिया से पीड़ित होकर वह गुजर गयी | दवा ईलाज के लिये अपने पास से हो सका किया, लेकिन बच्ची नही बची |  शबाना (उम्र 20 पत्नी नफीम) को कैम्प में आने के दो महीने बाद लडकी पैदा हुई, वह भी निमोनिया से पीड़ित होकर एक हफ्ते बाद गुजर गयी | परवीन (उम्र 30 पत्नी असलम) ने बताया कि, हम कलेजे पर पत्थर रखकर कैम्प में रह रहे हैं | जब हम किसी जरूरत का सामान लेने के लिए आसपास के दुकानों में जाते हैं तो लोग बाग हमें देखकर बोलियां बोलते हैं, की ये लोग कैम्प में कम्बल और राहत के सामानों के लालच में पड़े हैं इनकी तो मौज है हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं | यंहा हम इनकी शरण में हैं क्या कहें, खुदा किसी को ऐसे दिन ना दिखाए | रात में हमारे चूल्हे में कुत्ते के बच्चे आकर सो जाते हैं और सुबह उसी चूल्हे में हम खाना पकाते है हमारा ईमान भी खराब हो रहा है लेकिन खुदा सब देख रहा है वह हमें माफ़ करेंगें |  
हडौली गाँव की मैहरुनिसा ने हमें बताया की दंगे में मेरे पति सत्तार लापता थे मैं मेरी सत्तर वर्षीय बूढी सास शरीफन रह रहकर बेचैन हो जाते कि उनका क्या हाल होगा ? कंहा होंगे ? सात दिन बाद खतौली में उनका पता चला जब उनकी कहानी सुनकर हमारे पाँव तले जमीन खिसक गयी | जब शाम को मेरे पति जब फेरी के कपड़े बेचकर घर आ रहे थे तो उन्हें तीन जाटो ने उन्हें मोटरसाईकिल से दौड़ा लिया था, वे किसी तरह गिरते पड़ते अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे | लेकिन डाक्टर साहब के दुकान के पास उन जाटो ने मेरे पति को घेर लिया और उन्हें गिराकर उनकी गर्दन पर हथियार से वार करने ही वाले थे कि डाक्टर साहब ने उन्हें रोकने की कोशिश की वे मानने को तैयार नही थे | उन्होंने मारने का कारण भी पूछा, जवाब में उन्होंने कहाकि बस ऐसे ही इसे मारना है | उनके बीच बचाव के बीच ही मेरे पति जान बचाकर भाग निकले | वे डाक्टर साहब भी जाट थे, लेकिन उनकी वजह से ही मेरे पति की जान बच गयी | यदि वे न होते तो शायद मेरे पति मार दिए जाते | हम उनके लाख-लाख शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने उन तीन जाटो को रोका जो मेरे पति को मरना चाहते थे | दहशत से उनकी तबियत बहुत खराब हो गयी थी | अपने नाक की सोने की लौंग और कान का कुंडल बेचकर बहुत दिन ईलाज कराया | अभी भी वे बहुत डरे सहमे हैं, तबियत हमेशा खराब ही रहती है | इसी से उन्हें मेरी बहन ने अपने घर में शरण दिया है | मैं अपनी सास और बच्चों के साथ कैम्प में हूँ, आखिर रिश्तेदारों पर बोझ तो नही बन सकते हैं |
 सिसौली गाँव की छोटी (उम्र 28 पत्नी इदरीश) जिसके तीन माह का बच्ची अक्शा का जन्म यहीं कैम्प में हुआ, दंगे के समय उसका भाई यासीन सिसौली में ही था उसे तलवार से चोट आ गयी थी, जिसका ईलाज शाहपुर में ही कराया | उस समय ईलाज की कोई व्यवस्था नही थी, इस समय वह अपने घर चला गया है उसे कोई मुवावजा भी नही मिला | खातून (उम्र 35 पत्नी नूरहसन) जिसका ढाई महीने का बच्चा है कई ऐसे छोटे बच्चे हैं जिनके देखभाल और ईलाज की कोई सुविधा नही मिली | चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि सोरम, सिसौली, हडौली, और गोइला गाँवो के दस पन्द्रह घरों के जो दंगे पीड़ित शाहपुर कैम्पों में रह रहे थे, उन्हें प्रशासन ने दंगा पीड़ित नही माना | सिसौली और सोरम जंहा अपने खाप पंचायतो के लिए जाना जाता है, विदित है कि वंही सिसौली प्रसिद्ध जाट किसान नेता का गाँव है | महिलाओं ने बताया कि सोरम में उनके कपड़े उतारे लिए गये, उन पर गोलिया चली, तेजाब फेंका गया, किसी तरह से वे जान बचाकर भागे, पुलिस ने भी उनकी पिटाई की | अभी एक दिन पहले ही सोरम में मुस्लिम बच्चों की स्कूल से लौटते समय पिटाई की गयी | हडौली में मस्जिद फूंक दी गयी, वंही दुल्हेरा के हकिमु की बेटी सलेहरा अभी भी गायब है |     
 हमने देखाकि बारिश से कैम्प की मिट्टी गीली हो गयी थी कई जगह पानी भी इक्टठा था, कुछ टेंटो की जमीन में बिछी पुआल भी पूरी तरह गीली थी | महिलाए और बच्चे हमें अपने टेंटो में ले जाकर दुर्दशा दिखाकर अपना दर्द हमें बता रहे थे | उन्होंने बताया की ठंढ में हम रात भर जागकर किसी तरह बिताते हैं, ठंढ के मारे नींद नही आती | ठंढ में हमारे बच्चे ज्यादा बीमार हो जा रहे हैं | दंगे के कुछ दिन बाद एकाध बार दवा मिली डाक्टर आये, फिर कोई नही आया | हमारे तन पर जो कुछ था, उसे बेचकर हम अपने बच्चों का ईलाज कराते हैं | अभी भी कई छोटे बच्चे, नवजात बच्चे और उनकी माँऐ, गर्भवती महिलाए जिन्हें आम तौर पर खास देखभाल की जरूरत होती है वे इस हाड़ कपा देने वाली ठंढ में खुले कैम्पों में जरूरी सुविधाओं के अभावों में रहने को मजबूर हैं |
यूरोपियन यूनियन ने एक लाख पचास हजार यूरो आक्सफेम संस्था के द्वारा मुजफ्फरनगर और शामली के दंगा  पीडितो की सहायता के लिए देने की घोषणा की है | वंही क्राई संस्था बच्चों की मौतों की खबरों को संजीदगी से लेकर सीधे मदद करने का निर्णय लिया है | मुजफ्फरनगर और शामली के के कैम्पों में, (9804) नौ हजार आठ सौ चार बच्चों की गिनती की गयी थी, जिनमें कई बच्चे मौत का शिकार हो चुके हैं | अभी भी कई बच्चे और गर्भवती महिलाए थीं, जिन्हें देखभाल और चिकित्सीय सुविधाओ के आभाव में जूझ रहे हैं जिन्हें मदद की जरूरत है | पिछले ही वर्ष दिसम्बर माह में निर्भया के साथ बलात्कार की घटना पर जंहा देश भर में विरोध और भर्त्सना की गयी | वंही मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ित महिलाओ के साथ 5 नवम्बर 2013 तक 13 बलात्कार की घटनाओं पर नागर समाज की आश्चर्यजनक चुप्पी सवालिया निशान है |
मुजफ्फरनगर की साम्प्रदायिक हिंसा कथित छेडछाड की घटना के बाद हत्या कर देने और बाद में छेड़छाड़ की बात न आने की कहानी जंहा एक तरफ हिन्दू फांसीवादी ताकतों के साथ मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों को रेखांकित करती है | सुप्रसिद्ध अमेरिकन चिंतक एडमन बर्के के इस बात को सही सिद्ध करता है कि “ इस देश में धर्म का कानून, जमीन का कानून, इज्जत का कानून सब मिलाकर एक साथ एक पुरुष के कथित आध्यात्मिक कानून से जुड़ा है जो उसकी जाति है ” |
चूँकि वर्तमान में शासन के निर्देश पर प्रशासन द्वारा जबरिया कैम्पों में रह रहे दंगा पीड़ितों से कैम्प खाली कराया जा रहा है, जिनका घर-बार उजड़ चुका है और अपने गाँव में भी उनकी कोई पुश्तैनी सम्पति, ठौर ठिकाना साथ ही एक नागरिक के हैसियत की बुनियादी सुविधाए और कल्याणकारी योजनाओं (राशनकार्ड, मनरेगा-जाबकार्ड) से कोई सम्बधता नही है, ऐसे परिवार दर–दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं | दंगा प्रभावित गांवो से दंगे के कारण विस्थापित परिवारों की पहचान कर उनकी खाद्य सुरक्षा, आजीविका, आवास, महिलाओं और बच्चों के लिए बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाए, बच्चों की प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए विशेष कार्यक्रम चलाये जाने की जरूरत है | मनोवैज्ञानिक इस बात से सहमत होंगे कि इन परिवारों को लगातार चिकित्सीय देखभाल की भी आवश्यकता है क्योंकि मावन मन मष्तिक पर किसी भी हिंसक घटना का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है जिससे उनके अंदर विभिन्न प्रकार की शारीरिक समस्याए पैदा हो जाते हैं जिससे उनकी कार्यक्षमता और दक्षता, निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास प्रभावित होता है, साथ ही ठंढ के मौसम में इस क्षेत्र का तापमान काफी नीचे होता है जिसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है जब चिकित्सा की विशेष जरूरत है |    
ऐसे में जरूरत है कि विभिन्न राजनैतिक पार्टिया अपनी –अपनी रोटियाँ सेंकने के और जनता को गुमराह करने व एक दुसरे पर दंगे की जिम्मेदारी डालने के बजाय दंगा पीड़ितों के तन से गहरे मन के घावों को भरने के प्रयास में मिलकर काम करें | पीड़ितों के इज्जत, आशा, मानवीय गरिमा को ध्यान में रखते हुए अविलम्ब बिना किसी भेदभाव के नागरिक अधिकार संरक्षित करते हुए पुनर्वासित किये जाने की लम्बे समय तक कार्यक्रम चलाना होगा, जिसमें मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक सम्बल के पहल को महत्व देना होगा |

श्रुति नागवंशी (संयोजिका वायस ऑफ़ पीपुल, उत्तर प्रदेश)











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